Sunday 2 October 2011

Joker Jasoos: Chapter 1 to 4

जोकर जासूस


(जावेद-अमर सीरीज)


Prologue 



मेनहोल के ढक्कन को हटा के जोकर बाहर आ गया. वह तेजी से सड़क के किनारे एक तरफ बढ़ गया.
"ऐसी भी क्या जल्दी है, यार?" आवाज़ आई.
जोकर ने देखा सड़क के पार एक कार खड़ी थी. कार के अन्दर जॉन और बाहर अमर खड़ा था. उसके हाथ में रिवॉल्वर थी.
एक बार तो जोकर चौंका, फिर तुरंत सामान्य होते हुए बोला- "ओह! तो ये तुम हो. भारत के लाल, सुप्रसिद्ध जासूस- अमर. और जावेद कहाँ है? काफी नाम सुना है तुम लोगों का."

"नाम तो मैंने भी तुम्हारा बहुत सुना है, पर देख आज पहली बार रहा हूँ. तमन्ना थी-तुमसे मुलाकात की, पर इन हालातों में मिलेंगे ऐसा नहीं सोचा था."
"पर मेरे को पूरा विश्वास था. बात ये है न दोस्त- हमारा प्रोफेशन ही ऐसा है, की नॉर्मल हालातों में मिलना मुश्किल है."

अमर ने हामी भरी, फिर कार का दरवाजा खोल दिया. "आओ, बाकी बातें कार में होंगी."
"ओह! यानि- तुम मुझे पकड़ना चाहते हो?"
"ये तो बस आमंत्रण है, एक जासूस का दूसरे के लिए."
"अभी टाइम नहीं है दोस्त." कहकर जोकर आगे बढ़ गया.
"न..न..!" अमर ने फायर किया, गोली जोकर के बढ़ते कदम के ठीक आगे सड़क पे लगी. "इतने भी निष्ठुर मत बनो यार."
"ओह! यानि की जबरदस्ती है."
"तुम हमारे मेहमान बन जाओ, हमारे भारत महान में एक से एक महान लोग हैं, उनके हाथ आ गए तो अंजाम सोच भी नहीं सकते."
"मेरे को किसी की मदद नहीं चाहिए."
"और हमें अपने देश में कोई हंगामा नहीं चाहीये." इस बार अमर कुछ गुस्से में बोला-"चुपचाप बैठो वरना एक-दो गोली डाल के बैठना होगा."
जोकर ने कंधे उचकाए. "जैसी तुम्हारी मर्जी."
अमर ने फायर कर दिया.

---- इसी नोवेल से. पूरी कहानी जानने के लिए, अब शुरू से पढ़ें-------




1
सड़क के बीचोबीच उसे खड़ा देखकर ट्रक ड्राईवर भौचक्का रह गया. दोनों हाँथ उठाकर उसे रोकने का इशारा कर रहा था वो लम्बा-चौड़ा शख्श जिसके बाल बढे हुए थे. दाढ़ी मूंछ घनी थीं. शारीर पे एक लम्बा सा कोट था.

ड्राईवर को उसे लिफ्ट देने की जरा सी भी इच्छा नहीं थी. किन्तु-

जब उसे यकीन हो गया- वो व्यक्ति सामने से हटेगा नहीं और यदि उसने ठीक समय पे ब्रेक पे पैर का दबाव नहीं बढाया- तो वो ट्रक के नीचे आ जायेगा, उसने ब्रेक दबा दी.

बड़ी तेज़ चरमराहट की आज निकलते हुए ट्रक के पहिये स्थिर हो गए. ट्रक उस व्यक्ति से सिर्फ आधे इंच की दूरी पे रुका था. ड्राईवर ने खिड़की से सर बहार निकला और चिल्लाया, "क्यों भाई? क्या बात है? लिफ्ट मांगने का ये कौनसा तरीका है?"

लम्बा-चौड़ा व्यक्ति चुपचाप उसकी खिड़की के पास आकर खड़ा हो गया और जब उसने अपने हाँथ कोट के साए से निकाले तो जैसे- ड्राईवर को लकवा मार गया. सारे शरीर में झुरझुरी सी फैल गयी. दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. मुह से एक शब्द निकालने की हिम्मत ख़त्म हो गयी.

उसके बांये हाँथ में AK 47 थी जिसे उसने इस लापरवाही से पकड़ रखी थी- जैसे वो कोई हथियार नहीं बल्कि एक टोर्च हो. जिसका रात के इस वक़्त उसके पास होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी. हालाँकि ड्राईवर के लिए ये स्थिति न केवल आश्चर्यजनक थी बल्कि भयानक भी थी.

शाख्शात मौत उसके सामने खड़ी थी.


"तुम कहाँ जा रहे हो?" उस व्यक्ति ने लापरवाही से पूछा. शायद उसे ड्राईवर की हालत का अंदाज़ नहीं था. या इस बारे में सोचना उसे समय की बर्बादी लग रही थी.

"मैं...मैं...मैं...!" भय से उसकी जुबान लड़खड़ाई.
"मुझे लिफ्ट चाहिए. कहाँ जा रहे हो?"
"स...सारयां." किसी प्रकार शब्द बाहर आये.

वह बिना कुछ बोले ट्रक में चढ़ गया और ड्राईवर की बगल में बैठ गया.


ड्राईवर उसकी तरफ देखने में भी घबरा रहा था. सड़क के आगे शुन्य में देखते हुए वह काँप रहा था.

"क्या हुआ? चलो अब.."


हिम्मत जुटाते हुए ड्राईवर ने उसकी तरफ देखा- वह व्यक्ति आराम से पैर फैला के बैठा था. AK 47 उसकी गोद में राखी हुई थी. सर को सीट पे टिका के पूरी ऐश फरमा रहा था वो.

कांपते हुए हाँथ से ड्राईवर ने गेअर लगाया और धीरे से ट्रक आगे बढ़ गया.

पांच मिनट तक शांति के वातावरण में दोनों बेठे रहे. पहला स्वर ट्रक के पैस्सिंजर के मुंह से निकला.

"नाम?"
"मर्फी ....मर्फी!"
"काम?"
"ट्रक ड्राईवर हूँ."
"ट्रक में क्या ले जा रहे हो?"
"जूते सैंडिल. एक फैक्ट्री में  काम करता हूँ. आस-पास के सभी देशों में इनका व्यापर होता है..."
"तो इस वक्त द्रोवेलिया जा रहे हो?"
"हाँ. सारयां में डिस्ट्रीब्यूटर है. उसी को ये माल पहुँचाने जा रहा हूँ." किसी आज्ञाकारी विद्यार्थी की तरह वो हर सवाल का जवाब दे रहा था. देता भी कैसे नहीं. शक्ल-सूरत से ही वो व्यक्ति बेहद खतरनाक लग रहा था. और उसके बात करने के शांत लहजे से उसे और भी ज्यादा डर लग रहा था.

"फिर तो तुम्हारे पास पासपोर्ट भी होगा."
"हाँ."
"मुझे द्रोवेलिया पहुंचना है." उसने घोषणा  की.
मर्फी समझ गया-यह व्यक्ति एक आतंकवादी है और उसके ट्रक के ज़रिये सीमा पार करना चाहता है. यानी- इस वक़्त वह एक आतंकवादी की मदद कर रहा है. कितना बड़ा जर्म है ये. यदि सीया पर तैनात सैनिकों द्वारा पकड़ा गया तो इसके साथ-साथ खुद उसका भी जेल में पहुंचना निश्चित है. इस वक़्त उसकी भलाई इसी में है, कि इसे चुपचाप सुरक्षापूर्वक सीमा पार करा दे. कुछ सोचते हुए, वह बोला-
"सारयां पहुँचने के दो रास्ते हैं. आमतौर से में छोटे रास्ते से ही जाता हूँ- पर उस रास्ते से ससीम पर काफ चैकिंग होती है, जबकि लम्बे रास्ते पर सीमा पर सिर्फ एक चौकी पड़ती है. वहां से हम आसानी से निकल जायेंगे."
"हूँ!" उसने गर्दन हिलाई. "वह लम्बा रास्ता कहाँ है?"
"चार मील बाद चौराहा पड़ेगा. उस लम्बे रास्ते के लिए हमे दांये मुड़ना पड़ेगा. छोटा रास्ता सीधे पड़ता है."

वह कुछ नहीं बोला, सिर्फ हामी भरकर सामने देखता रहा. उसके चेहरे पर कोई शिकन, कोई परेशानी नहीं थी. मानो ऐसे काम वो हज़ारों बार कर चूका था.


ट्रक चलता रहा. साथ में चलता रहा मर्फी का बेचैन दिमाग. क्या-क्या सोचता चला गया वो. कुछ हिम्मत करके उसने पूछा-
"अ...आप कौन हैं?"
जवाब में मुस्करा दिया वो खतरनाक इंसान.
मर्फी को लगा शायद ये सवाल पूछ कर उसने खुद अपनी मौत को न्योता दे दिया.
"आतंकवादी हूँ. नाम है- बादशाह अली."


मर्फी का दिल धाड़-धाड़ बजने लगा. उसकी बगल में एक ऐसा दुर्दांत आतंकवादी बैठा था-जिसका ज़िक्र वो आये दिन समाचार व न्यूज़ में  सुनता रहता था. कैसा दुर्भाग्य था उसका-जब किसी आतंकवादी से सामना हुआ भी तो सीधे आतंकवादियों के बाप से. और उस पे बड़ा दुर्भाग्य ये था की उसने बेवकूफी में उसका नाम पूछ लिया. निश्चित ही सीमा पार करने के बाद वह उसकी जीवन-लीला समाप्त कर देगा. क्यूंकि- अब वो इतने बड़े रहस्य को जान गया था. पर क्या पता इस दुर्दांत को उस पर रहम आ जाये. शायद वो उससे खुश हो जाये.

"एक बात बोलूं?"
बादशाह ने सर हिलाकर आज्ञा दी.
"मुझे आप लोगों का नजरिया पसंद है. ग...गलत ही क्या है? अपने देश के हक के लिए ही तो काम करते हो आप. देशभक्ति का ही एक तरह... से काम है.."
बादशाह उसे ध्यान-से देखने लगा. मर्फी के होंठ एकदम चिपक गए. उसे लगा उसने फिर कुछ गलती कर दी. तभी-

चौंक गया मर्फी. एक बार तो उसे लगा की बादशाह ने फायर कर दिया.

पर वह आवाज़ थी-उसके ठहाके की. हँसता ही चला गया वो. मर्फी को समझ नहीं आया की वो राहत महसूस करे या और डरे.

दिल खोल के हंसने के बाद बादशाह बोला- "किता डरता है आदमी. दो सेकेण्ड की मौत से हर वक़्त खौफ में जीता है."

मर्फी को लगा-सीमा पार करने के बाद ये निश्चित-रूप से उसे हलाल कर देगा. इस ख्याल से उसकी आँखें भीग गयीं.

"मैं मरना नहीं चाहता. तुम्हे आराम-से सुरक्षित सीमा पार पहुंचा दूंगा. साड़ी उम्र किसी से इस घटना का ज़िक्र नहीं करूँगा. प्लीज़ मुझे मारना मत. त...त...तुम्हे अपने वतन का वास्ता."

बादशाह मुस्कराते हुए उसकी वेदना सुनता रहा. उसके चुप होने के बाद बोला-"तुम मेरा नाम ज़रूर जान गए हो पर बादशाह अली क्या है-ये नहीं जानते. अगर मुझे तुम्हारा क़त्ल करने की ख्वाहिश होती तो लिफ्ट मांगने की जगह तुम्हे मार के तुम्हारा ट्रक हंथिया लेता..उसके बाद भी में सीमा की सेना को कुचलता हुआ निकलने का दम रखता हूँ. बादशाह अली कुछ भी हो सकता है पर एहसानफरामोश नहीं."

मर्फी की जैसे जान में जान आई. आगे चौराहा दिखा देने लगा था.

"वही चौराहा है?"
"हाँ. वही है." उसने आंसू पोंछते हुए जवाब दिया.
चौराहे पे पहुँचते ही बादशाह बला-"सीधे चलो."
"सीधे??? म..मगर."
"सीधे!!! चलो." इस बार कुछ तेज बोला बादशाह.

मर्फी ट्रक सीधे निकाल ले गया. उसे समझ नहीं आया-अचानक बादशाह को क्या हो गया? अक्ल पे ताले कैसे पड़ गए?

"लेकिन ये छोटा रास्ता है. आगे चौकी पे दर्जनों स्सैनिक होंगे. हम..."
"मुझे इसी तरफ से जाना है." बादशाह ने द्रण स्वर में कहा.
"क्या तुम जल्दी पहुंचना चाहते हो?"
"नहीं! जल्दी वाली क्या बात है?"
"फिर ऐसा रिस्क क्यों ले रहे हो?" मर्फी को याद आया कि यदि बादशाह चैकिंग के दौरान पकड़ा गया तो उसकी भी खाट खड़ी हो जाएगी.
"तुम्हे घबराने की ज़रुरत नहीं ह. चुपचाप चलते रहो."

मर्फी चुपचाप अपने इश्वर को याद करने लगा.


दोनों देशों को अलग करती सीमा पर दो चौकियां थी. दोनों में करीब 50 मीटर का गैप था.


द्रोवेलिया की चौकी पे तीस-चालीस सैनिक मौजूद थे. दो-दो सैनिक पास बने टोवरों पर तैनात थे. कुछ सैनिक सड़क पे आते-जाते वाहनों की तलाशी ले रहे थे.

दोनों देशों के बीच हे. काफी आचे सम्बन्ध थे, और सैनिक भी रोज़ के इस काम को बेमन से कर रहे थे. चैकिंग के नाम पे- लोगों के पासपोर्ट और सामान पे एक नज़र दाल के उन्हें विदा कर रहे थे.

दो वैन पास करने के बाद लगा ट्रक का नंबर. चैकिंग कर रहे दो सैनिक ट्रक ड्राईवर के दरवाजे के पास आ गए. उनके कुछ कहने से पहले ही ट्रक के ड्राईवर ने पासपोर्ट सामने कर दिया.

"क्या नाम है?" पासपोर्ट पे टोर्च की रौशनी डालते हुए एक सैनिक ने पूछा.
"मर्फी स्टीवेंस."
"क्या ले जा रहे हो?"
"फुटवेअर."
"परमिट दिखने का कष्ट करोगे?" सैनिक ने टोर्च का रुख मर्फी के मुंह की तरफ किया-उके घबराये हुए चेहरे पे पसीना था.
"क्या बात है? परेशान दिख रहे हो."
"नहीं... बस यूँ ही!" परमिट उसके हाँथ में थमाते हुए मर्फी बोला, "लेट हो गया हूँ. लौटते वक़्त बॉस की दांत पड़ेगी, इसीलिये..."
"डोंट वरी मैन." परमिट वापस करते हुए वो बोला, "देर नहीं होगी. तुम जूते ही ले जा रहे हो, सोने के बिस्किट नहीं."

कहकर वो हंस दिया. मर्फी भी मुस्कराया. दूसरा सैनिक ट्रक के सामन को बाहर से ठोक-बजा के देख रहा था.

"क्या हुआ जैक? कुछ सोना-चांदी मिला क्या?"
"घबरा मत. मिलेगा तो एक-दो बिस्किट तुझे भी दे दूंगा." जैक का जवाब आया.
तसल्ली कर लेने के बाद जैक वापस आ गया और बोला-"ओके बॉस, जा सकते हो."
"खट...!" तभी ट्रक में इ आवाज़ आयी.
दोनों सैनिकों के कान खड़े हो गए. आवाज़ काफी तेज़ थी और साफ़-साफ़ सुनाई दी थी. मर्फी सब कुछ समझते हुए भी, अंजान बनने की कोशिश करने लगा. उसने चाभी घुमा के इंजन स्टार्ट कर लिया.

"एक मिनट. ये आवाज कैसी थी?"
"मेरे जूते की थी." मर्फी जबरदस्ती मुस्कराया.
"और तुम्हारे जूते लोहे के हैं?" कहते हुए एक झटके में जैक दरवाजे पर चढ़ कर अन्दर आ गया.

मर्फी के बगल वाली सीट के नीचे वो सर झुका के छुपा हुआ था. जैक ने अपनी गन उसकी पीठ से लगा दी. उसने चौंककर सर उठाया तो जैक सकपका गया. उसका चेहरा वो लाखों में भी पहचान सकता था.

"तु...तुम!"
इधर बाहर हदे सैनिक को उलझन होने लगी. "क्या हुआ जैक? किसी औरत को छुपा के ले जा रहा है क्या ये?"
अन्दर-जैक ने AK 47 अपने कब्जे में ली और उसे नीचे उतरने का आदेश दिया.
बाकी सैनिक भी वहां आ गए थे. उस शख्श को देख के वो सभी अवाक् थे.
उसे फ़ौरन गिरफ्तार कर लिया गया.


बादशाह अली की गिरफ़्तारी के करीब दो साल पहले, द्रोवेलिया की राजधानी डुजाक में एक रहस्यमय घटनाक्रम हुआ था- जिसका सम्बन्ध बादशाह से ही था. पर इस रहस्य को जानने वाले - सिर्फ कुछ ही लोग थे, पर वो सब बेहद खतरनाक थे.

प्रोफेसर अर्थर स्मिथ.

द्रोवेलिया के रिसर्च लैब के एक जाने-माने वैज्ञानिक.

अभी-अभी घर को लौक करके अपनी कार में बैठे थे. कार में बैठते ही उन्हें कुछ गड़बड़ी का अहसास हुआ. कार एक तरफ थोड़ी सी झुकी हुई थी.

बाहर निकल के पता चला की कार के टायर की हवा निकली हुई थी.


झुन्झुला गए प्रोफेसर. उन्हें पहले ही लैब पहुँचने में देर हो रही थी. पांच मिनट में एक ज़रूरी कांफेरेंस शुरू होने वाली थी, जिसके अध्यक्ष वो खुद थे. कुछ ज़रूरी पेपर लेने के लए वो घर आये थे, वरना घर तो वो महीने में दो-तीन बार ही आते थे. आते भी किसके लिए?


अकेले ही तो थे वो. शादी के बारे में कभी सोचा भी नहीं. सारा समय सिर्फ रिसर्च में ही बीतता था. लैब में ही खाना-पीना, वहीँ पे सोना.


टायर बदलने का समय नहीं था. वो तेजी से सड़क की तरफ चल दिए. गनीमत थी की एक खाली टैक्सी पास में ही खड़ी मिल गयी.


ड्राईवर जो की अन्दर बैठा ऊंघ रहा था, प्रोफेसर के बैठते ही जागरूक हो गया.


उसको पूछने का मौका दिए बगैर प्रोफेसर ने कहा-"रिसर्च लैब चलो. जल्दी!"
"जी!" ड्राईवर ने टैक्सी स्टार्ट कर दी.


पांच मिनट तक प्रोफेसर चुपचाप बैठे रहे, फिर कुछ क्रोधित स्वर में बोले, "अरे भाई! क्या बात है? इधर-उधर क्यूँ घुमा रहे हो? सीधे रास्ते से क्यूँ नहीं गए? पिछले चौराहे पर बांये मुड़ना था."
"साहब, वो रास्ता इस वक़्त फोर-व्हीलर के लिए बंद है."
"क्या बकवास है, अभी पांच मिनट पहले ही मैं उधर से आया था. मैं तुम लोगों को अच्छी तरह से जानता हूँ. मीटर रीडिंग बढ़ाने के चक्कर में ऐसा करते हो."
"गुस्सा मत हो सर. रिसर्च लैब तक जितना किराया होता हो-आप मुझे उतना ही देना." बोलते वक़्त ड्राईवर उन्हें रियर व्यू में देख रहा था, प्रोफेस्सर अभी-भी गुस्से में थे. होते भी कैसे नहीं, जिस कॉन्फ्रेंस का आयोजन वो खुद कर रहे थे, उसी में लेट पहुँचने वाले थे.


ड्राईवर फिर बोला,"पिछले हफ्ते दो बार चालान हो चूका है, साहब. अब कोई रिस्क नहीं लेना चाहता."
प्रोफेसर ने गहरी सांस छोड़ी और घडी को ताके लगे.
इस तरह एक और चौराहा निकल गया. टैक्सी सीधे ही नीकल गयी. प्रोफेसर ने कुछ नहीं कहा.

जब तीसरे चौराहे पर भी उसने टैक्सी नही मोड़ी, तो प्रोफेसर का सब्र टूट गया.

"टैक्सी रोक!!" वो सख्ती से बोले.
"क्या हुआ साहब?"
"मैं कहता हूँ- रोक टैक्सी."
और तभी-
बुरी तरह से हड़बड़ा गए प्रोफेसर.

उनकी सीट के नीचे से एक आदमी निकल आया. उसके हाँथ में रिवॉल्वर थी, जिसकी नली लम्बी-से थी. उसने अंगुली को होंठो पे रख के प्रोफेसर को चुप होने का इशारा किया.

"ये सब...ये सब क्या है?" प्रोफेसर घबराये. टैक्सी की स्पीड बढ़ाते हुए ड्राईवर ने उत्तर दिया-

"ये मेरा दोस्त है साहब. सीट के नीचे सो रहा था. आपके शोर-शराबे से इसकी नींद खुल गयी."
"क्या चाहिए तुम लोगों को? लो रखो-" कहकर प्रोफेसर ने जेब से पर्स निकाला. "रखो. सारे पैसे. घडी भी लेलो. इन सब से ज्यादा कीमती मेरा समय है."
"तुम्हारे समय की कीमत हम अच्छी तरह से जानते हैं. हम तुम्हे पूरी कीमत अदा करेंगे." ड्राईवर का दोस्त बोला,"इसे तो आप जानते ही होंगे. वो भी बहुत अच्छी तरह से.."
"क्या है ये?" प्रोफेसर ने देखा-उसने एक छोटी-सी बोतल निकाल ली थी, जिसमे पारदर्शी द्रव्य था.
"क्लोरोफॉर्म. अच्छी नींद के लिए... " उसने रुमाल को उससे भिगोया.
"क्या चाहते हो तुम लोग? मैं..रुको..."
इसके आगे उनकी आवाज को उसके रुमाल वाले हाँथ ने रोक लिया.

प्रोफेसर वाकई गहरी नींद में सोते चले गए.


जब प्रोफेसर की नींद खुली-वो एक नयी जगह थे. और अपने चारों ओर की स्थिति देखकर उनकी आत्मा तक घ्रणा से भर गई. उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था की इतना सबकुछ उनकी बेहोशी में हो गया. कुछ ही मिनटों में उनका जीवन इस तरह से बर्बाद हो गया है.


"तुम लोग... उफ़! कोई इतनी नीचता कैसे कर सकता है?" फर्श पे बैठे हुए उन्होंने कहा. उनके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था. पूरी तरह से नग्न. पास में ही एक और शरीर था-एक जवान लड़की का. वह भी पूरी तरह से वस्त्रहीन थी. बेहद गहरी नींद में सो रही थी वो.


ड्राईवर एक कुर्सी पर बैठा था. उसके हांथो में एक कैमरा था. उसने कुछ कपडे प्रोफेसर के ऊपर फेंक दिए.
"इन्हें पहन लीजिये."
"तुम लोग हो कौन? इस सबे क्या मिलेगा तुम्हें? इस मासूम की हत्या करते वक़्त तुम्हारे हाँथ नहीं काँपे? हे भगवान्..और मेरी बेहोशी में..."
"हमने आपको इस लाश के साथ लेटा कर कुछ फोटो खींच लिए हैं. अब पुलिस सोचेगी- या तो आपने इसका रेप किया या फिर आपके इसके साथ गलत सम्बन्ध थे, और फिर किसी वजह से आपने इसका मर्डर कर दिया, वो भी वैज्ञानिक तरीके से."


"हरामजादे!.. " चिल्लाते हुए प्रोफेसर उस पर चढ़ बैठे. अपनी नग्नता का जरा भी होश नहीं रहा. उसका गला कसके पकड़ लिया. पास में खड़े एक दुसरे आदमी ने जल्दी-से प्रोफेसर को खींचा और एक झापड़ जमा दिया.


अपने बूढ़े-नंगे जिस्म को लिए वो एक तरफ गिर गए.
"पानी पिलाओ इन्हें." उसने उस टैक्सी ड्राईवर से कहा.
पानी पीने के बाद उन्होंने प्रोफेसर को कपडे पहनने का निर्देश दिया. प्रोफेसर के चेहरे पर मुर्दांगी छाई हुई थी. धीरे-धीरे कपडे पहन लिए.


"आराम से बैठिये. हमारा यकीन मानिए. हम आपके हित में ही सोच रहे हैं. समाज के कानून को हम नहीं मानते. हमारे अपने कानून हैं. और वो कहते हैं-खुद सफल बनो और दूसरों को भी सफल बनाओ." वह बड़े आराम से, पूरी सभ्यता के साथ कह रहा था. प्रोफेसर ने ध्यान दिया की उसने महंगा सूट पहन रखा था, और देखने में वो कोई बिजनस मैन लग रहा था. "हम आपको अमीर बनाना चाहते हैं, और उसके बदले में आपके दिमाग का सदुपयोग करना चाहेंगे. आप सोचेंगे-हम खूनी-अपराधी हैं. पर हमने तो ये खून एक अच्छे काम के लिए ही किये हैं."


आर्थर स्मिथ ने आश्चर्य से उसको घूरा. वो बोले जा रहा था- "ये एक कॉलगर्ल थी. कल रात मैंने इसको लिफ्ट दी. यहाँ लाया और इसका क़त्ल कर दिया. है तो एक कट पर जरा सोचिये- क्या ये एक अपराधी नहीं है? कितने लोगों को ये एड्स आदि रोग फैला सकती है. कितनी पत्नियों का सुख लूट सकती है. सच कहूं- इसे मारते वक़्त जरा-भी दया नहीं आई थी. पर फिर-भी आप कहेंगे- खून तो खून है, और फिर किसलिए? यदि आप अपने दिमाग का सदुपयोग किसी और से कराने लगे. या-अमीर बनने के बाद आप हमें धोखा दी की सोचने लगे. तो आपको कंट्रोल में करना- हमारे लिए बेहद आसान होगा. है न? बस इसीलिये हमें ऐसा करना पड़ा. सिर्फ अपने बचाव के लिए. अब सेल्फ डिफेन्स तो कोई गलत चीज़ नहीं है. इसी प्लान के के हिसाब से आपका अपहरण करना पड़ा. हमसे जो ये छोटे-मोटे जुर्म हुए हैं- उनसे ये बिलकुल मत समझना, कि हम आपको धोखा देंगे. ऐसा कभी नहीं होगा, बशर्ते आप हमें धोखा न दें. उस स्थिति में हमें आपको समाज के क़ानून के हवाले करने में कोई हिचकिचाहट नहीं होगी."


"मुझसे क्या चाहते हो? क्या काम करवाना है?" उसकी बातों से आर्थर स्मिथ को बेहद नफरत हो रही थी.
"सबकुछ बताता हूँ." कहकर वो मुस्कराया. "अब आप कुछ नॉर्मल लग रहे हैं. मुझे ख़ुशी है-आपका माइंड सैट करने में ज्यादा समय नहीं लगा. वैसे भी आप एक वैज्ञानिक हैं, ज्यादा समझदार हैं."
"वो सब तो ठीक हा, पर इसका क्या करोगे?" लाश कि तरफ इशारा करते हुए प्रोफेसर ने पूछा. लाश पर नज़र पड़ते ही उनके शरीर में भय की एक लहर दौड़ गयी.
"आप चिंता मत करिए. ये सरदर्द हमारा है. यहाँ से कहीं दूर फिकवा देंगे."
"ले...लेकिन पुलिस ने ढूढ़ ली तो?"
"आप भी कमल करते हैं-प्रोफेसर. यदि पुलिस को लाश नहीं मिली तो आप हमारे कंट्रो में कसे आयेंगे? लाश पुलिस को मिल जाएगी. पर उनके बाप भी हम तक नहीं पहुँच सकते. वैसे भी एक कॉलगर्ल की हत्या से किसके पेट में दर्द होता है? केस एक फाइल में तब्दील होकर पुलिस की हजारों के ढेर में शामिल हो जाएगी. सबूत रहेंगे हमारे पास. और इस फाइल को दुबारा-हम ही खोल सकेंगे. पर ऐसा आप होने नहीं देंगे-हमे पूरा विश्वास है."


प्रोफेसर चुपचाप उसका मुंह ताकते रहे.
"हो सकता है-आप ये सोचेंगे कि, ये फोटो ये तो साबित करते हैं कि आपने इसके साथ सम्भोग किया, पर क़त्ल नहीं. तो याद रखिये-क़त्ल का प्रमाण भी हमारे पास है. एक इंजेक्शन, जिस पर आपके फिंगर प्रिंट्स हैं और साथ में इसका खून भी मौजूद है. तो...आगे आप समझ ही सकते हैं.... अब ये सब बेकार कि बातें भूल जाईये. काम की बात करते हैं."



5 comments:

  1. hey nicely described yaar...go on and post more

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  2. hey nicely written, go on, what r ur main characters?

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  3. who is this Joker?

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  4. is it based on Rajan Iqbal?

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  5. Dear Readers,
    Please be patient, the main characters will appear soon in the coming chapters.

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