Monday 10 October 2011

Joker Jasoos: Chapter 5 to 10




5


इस तरह उस दिन कॉन्फ्रेंस प्रोफेसर के बिना ही हो गयी. उन्होंने माइग्रेन का बहाना बनाकर सबसे माफ़ी मांग ली. उनकी माफ़ी पर ध्यान दिए बगैर सभी इस बात पर चिंता करने लगे. कई लोगों ने उन्हें अपने रिसर्च सेंटर में आकर चैकप कराने का अनुरोध किया. उनसे दवाओं के बारे में पूछा जाने लगा. कई सावधानी बरतने को कहा गया. प्रोफेसर ने सबको चिंता करने का धन्यवाद् दिया , और कहा मैं अपना ख्याल रखूंगा.



दो दिन बाद प्रोफेसर का नॉर्मल रूटीन चालू हो गया. 

और पांचवें दिन-


उनके लैब एसिस्टेंट की शामत आ गयी.


रात में कुछ घंटो की नींद लेने के बाद प्रोफेसर अपनी प्राइवेट लैब में पहुंचे. उनका लैब एसिस्टेंट रौज़र हमेशा की तरह पहले से मौजूद था. कुछ आवश्यक कैमिकल और उपकरणों को तैयार करना उसका रोज़ का काम था.


प्रोफेसर लैब में आकर सीधे कोने में रखे अवन के पास पहुंचे. इस अवन से लैब में प्रयोग होने वाले ग्लास की विभिन्न सामग्री, जैसे की टेस्ट ट्यूब, फ्लास्क, पिपेट, ब्युरेट, बीकर आदि, को स्टेरिलाईज़ किया जाता था.

वो ध्यान से अवन को देखने लगे. रौज़र उनके पास पहुंचा, जबकि दूसरा एसिस्टेंट कैमिकल्स तैयार करने में लगा था.


"क्या हुआ सर?" रौज़र ने पूछा.
"इसका तापमान किसने सेट किया?" तापमान को नियंत्रित करने वाले नॉब को देखते हुए उन्होंने पूछा.
"मैंने ही किया था सर."
"हरामखोर!"कहकर एक ज़ोरदार थप्पड़ रौज़र के चेहरे पर जड़ दिया.


दुसरे एसिस्टेंट के हाँथ से रसायन की एक बोतल छूटते-छूटते बची. रौज़र अवाक्, प्रोफेसर को देखत रह गया. सालो बाद- स्कूल से निकलने के बाद आज उसे थप्पड़ पड़ा था. 


हैंस नामक दूसरा एसिस्टेंट वहां पहुंचा.


"क्या हुआ सर?"
"तुम सब कामचोर हो. मुफ्त की नौकरी मिल गयी और अब पूरी हरामखोरी से काम कर रहे हो." वो चिल्लाये.
दोनों हैरान से उन्हें ताकते रहे. आर्थर स्मिथ का ऐसा रोद्र रूप वो दोनों पहली बार देख रहे थे.
"मुझसे क्या गलती हूँ गयी?" रौज़र ने रुआंसे स्वर में बोला.
"चलो. मेरे साथ चलो." दोनों को धकेलते हुए वो बाहर चल दिए.
दोनों को समझ नहीं आ रहा थ- आखिर हो क्या गया? हैंस ने प्रश्नात्मक द्रष्टि रौज़र पर डाली, पर वो भी हैरान था. चार साल से वो रोज़ यहीं काम कर रहा थे. आज तक कभी कोई ऐसी गलती नहीं हुई की कोई इस तरह से रिएक्ट करे.
दोनों को समझ में आ गया की प्रोफेसर धकेलते हुए उन्हें रिसर्च लैब के हैड के पास ले जा रहे थे.


"सर...प्लीज.." रौज़र गिडगिडाने लगा-"आप बताइए न मुझसे क्या गलती हो गयी? फिर कभी कोई गलती नहीं होगी."


"चलो.." प्रोफेसर बिना कुछ सुने उन्हें धकेलते रहे. लैब के बाकी लोग भी ये तमाशा देखने लगे. इससे पहले की कोई पूछने के लिए आगे आता, अर्थर उन्हें लेकर लिफ्ट में चले गए. हैड का ऑफिस ग्राउंड फ्लोर पर था.


अपने ऑफिस में उन्हें इस तरह आते देख हैड चौककर खड़े हो गए.
"क्या बात है प्रोफेसर?"
"इन दोनों हरामख़ोरों से मैं नहीं निपट सकता. आप ही संभालिये इन्हें."
"लेकिन हुआ क्या? क्या किया है इन दोनों ने?"
"बता-!" रौज़र का कॉलर खींचते हुए प्रोफेसर ने कहा.
"पता नहीं सर. अचानक ही प्रोफेसर....मुझे कुछ नहीं पता. मैंने कुछ नहीं किया."
"अवन का टेम्प्रेचर किसने साईट किया था?"
"मैंने! पर...पर सर..."
"क्या टेम्प्रेचर सैट किया था?"
"260"
"झूठ!" कहकर प्रोफेसर ने एक और ज़ोरदार थप्पड़ जड़ दिया रौज़र पे.
"क्या कर रहे हैं प्रोफेसर?" कहते हुए हैड उनके बीच में आ गए. "आप बैठ जाइए प्रोफेसर अगर इन्होने कोई गलती की है तो उसकी सजा उन्हें मिलेगी."

प्रोफेसर ने सीट तो ले ली, पर अभी-भी क्रोध-से तमतमाते हुए उसे घूर रहे थे.
"क्या बात है?" हैड ने डांटते हुए पूछा-"तुम्हे अवन तक ऑपरेट करना नहीं आता?"
"सर मैंने तो रोज़ की तरह आ ज भी वही किया. प्रयोग में आने वाला सारा ग्लास का सामन अवन में रखकर 260 डिग्री का टेम्प्रेचर साईट कर दिया..."
"झूठ!" आर्थर स्मिथ चिल्लाया,"ये हरामखोर झूठ बोल रहा है."
"फिर क्या टेम्प्रेचर था, प्रोफेसर?"
"262"
हैड प्रोफेसर को घूर के रह गए. हैंस और रौज़र एक दुसरे का मुंह ताकने लगे.
"तो टेम्प्रेचर 262 था, और क्या किया इसने?" हैड ने पूछा तो प्रोफेसर एकदम हडबडा गए-हैड को कुछ देर घूरने के बाद कहा-"और कुछ करने को रह गया क्या?"


हैड कुछ देर सबको देखते रहे, फिर सोचने लगे. शायद तय कर रहे थे की जो वो सोच रहे हैं वो सही है या गलत?

"जहाँ तक मैं समझता हूँ- प्रोफेसर, अवन में साड़ी चीजें रखकर 260 टेम्प्रेचर सैट कर दिया जाता है. 45 मिनट बाद अवन को ऑफ कर दिया जाता है. पर उस अवन में 2-3 डिग्री के तापमान से क्या फर्क पड़ता है? यदि  तापमान 2 डिग्री ज्यादा हो गया-उससे क्या नुक्सान है? जीवाणु तब भी समाप्त हो जायेंगे. और 2 डिग्री ज्यादा होने से ग्लास को भी कोई नुकसान नहीं होगा. आपको नहीं लगता- आप कुछ ओवर रिएक्ट कर रहे हैं?"


प्रोफेसर कुछ नहीं बोले. शांतिपूर्वक अपने चश्मे को सही करते हुए टेबल को घूरने लगे.
"प्रोफेसर?" हैड ने उनके कंधे पर हाँथ रखा.
"आं...? हाँ- हाँ!"
"आपकी तबियत कुछ ठीक नहीं लग रही. मानता हूँ- आप बहुत मेहेंती हैं. अपने काम को पूरी तरह से समर्पित हो कर करते हैं. पर अपे स्वास्थ्य का ध्यान भी रखना चाहिए." हैड के इशारे पर हैंस और रौज़र चले गए. "ऐसा हूँ जाता है. मेरे साथ भी हो चूका है. काम के स्ट्रेस से गुस्सा बढ़ सकता है. रात को आप 7 घंटे की पूरी नींद लिया करिए."


प्रोफेसर ने कुछ नहीं कहा. चुपचाप सर हिला दिया. हैड के आग्रह पर वह विश्राम घर में पहुँच गए. हैड ने खुद उन्हें एक दवा दी और कुछ देर सोने को कहा. प्रोफेसर सो गए. दो घंटे बाद वो वापस लैब पहुंचे.


दोपहर में लंच के वक़्त हैड ने हैंस और रौज़र को अपने रूम में याद किया.


"सर कुछ समझ नहीं आया. आजतक प्रोफेसर ने कभी ऐसा बर्ताव नहीं किया." रौज़र कह रहा था, "हाथ उठाना तो दूर कभी हम लोगों से तेज आवाज में बात भी नहीं की. अपना काम हम लोग हमेशा ठीक तरह से करते हैं. कभी उन्होंने कोई शिकायत नहीं की. पर आज-"


"तुम लोगों की बात सही है. अचानक ही आज ये सब हुआ. उनकी तबियत ख़राब दिख रही थी, इसलिए शायद चिडचिडे हो रहे थे."
"सर!" हैंस बोला, "प्रोफेसर वैसे भी दुनिया में अकेले हैं. उनके घर में कोई नहीं है. हर समय सिर्फ रिसर्च के बारे में सोचते रहते हैं. ऐसे में स्वाभाविक है की अच्छा-भला इंसान भी पगला जाये."


"इतनी भी हालत बुरी नहीं है." हैड ने कहा.
"अरे सर! आप रौज़र से पूछिए- थोड़ी देर पहले प्रोफेसर कुछ काम करते-करते बेवजह बीकर और टेस्ट-ट्यूब तोड़ रहे थे...और-और क्या कह रहे थे?"
"कह रहे थे- ये बीकर नहीं चाहता मेरी रिसर्च सफल हो."


हैड सोच में पड़ गए. फिर बोला-"ठीक है! तुम लोग जाओ. हो सकता है-आज रात सोने के बाद दूसरे दिन वो नॉर्मल हो जाएँ. कुछ बात हो तो कल बताना."

 


दूसरे दिन तो अर्थर स्मिथ ने गज़ब ही कर दिया. लैब में घुसते ही एक-एक कांच के सारे सामान फर्श पर फेंकने लगे. कुछ देर तक तो उनके सहायक घबराये-से देखते रहे, फिर वे भागकर आस-पास से और लोगों को बुला लाये.


प्रोफेसर को रोका गया. रिसर्च लैब का पूरा स्टाफ वहां इकठ्ठा हो गया. हैड भी वहां पहुँच गए.


प्रोफेसर ने तोड़-फोड़ तो बंद कर दी थी, पर अब वो एक कुर्सी पे बैठ कर उन टूटे हुए कांच के सामान की ओर देखते हुए गालियाँ दे रहे थे.


हैड ने उसके पास आकर कंधे पर हाथ रखा, और कहा-"प्रोफेसर! टेक इट ईज़ी. क्या हो गया है आपको?"


तेजी-से झटक दिया अर्थर ने उसका हाथ. गुर्राया- "क्या हो गया है? क्या लग रहा है तुझे? साला हैड बना बैठा है. पूछ रहा है- क्या हो गया है. ये... ये हो गया है. ये हो गया..." कहते हुए वो टूटे-फूटे कांच के टुकड़ों को जूतों से रौंदने लगे.


हैड के इशारे पर कुछ लोगों ने आगे बढ़कर उन्हें जकड़ लिया.
"छोड़ो मुझे. गधों की लैब है ये. मैं कहता हूँ छोड़ो."


चार  लोग उन्हें कसकर पकडे हुए थे, प्रोफेसर की एक न चली.
"ले चलो इन्हें." वो लोग उन्हें एक कमरे में ले आये. हैड ने डाएज़ापाम  का एक इंजेक्शन उन्हें लगा दिया.
प्रोफेसर को कुछ ही मिनटों में नींद आने लगी. पर फिर भी उनकी आँखे खुली थी और वो कुछ बडबडा रहे थे. दस मिनट बाद भी जब वो नहीं सोये तो उन्हें एक और डोज़ दिया गया.


पाच मिनट बाद प्रोफेसर सो गए.
उनकी नींद खुली तो देखा-वो एक साईकैट्रिक के क्लीनिक में थे. हैड भी वह मौजूद थे. साईकैट्रिक ने उनसे बातचीत शुरू की, तो उन्होंने बेहद सामान्य ढंग से जवाब दिया.


क्लीनिक से निकलने के बाद अर्थर स्मिथ ने लैब के कुछ लोग, जो क्लीनिक तक आये थे, और हैड से कहा- "देखो-तुम लोग चाहे मुझे पागल कहो या सनकी. तुम सब मेरी नज़रों में हरामखोर बन चुके हो. मैं अब कभी लैब नही आऊंगा. और न ही तुम में से कोई मुझे इस सूअर के पिल्ले के पास ला सकेगा." उन्होंने साईकैट्रिक के क्लीनिक की तरफ इशारा किया.


"सर! आपको कोई पागल नहीं कह रहा." एक युवा साइंटिस्ट बोला-"आप हमारे सीनियर हैं. हमसे बड़े हैं. हम आपका साथ चाहते हैं. लैब आपके बिना अधूरी है."


"बेटे क्या कहूँ तुमसे..." प्रोफेसर प्यार से कहने लगे, फिर एकदम से सख्ती दिखाई- "हरामी तो तू भी है. कमीने पूरी सैलेरी हर महीने जेब में डालता है और लैब के लिए एक धेले का दिमाग भी नहीं खर्च करता. मुझे देख- मुझे! मुझ सूअर को देख! कुत्ता हूँ मैं. मेरा दिमाग खली हो गया लैब के लिए. क्या करूँ में इसका. दिमाग में थोडा सा कैमिकल बैलेंस बदल गया तो सबको मैं पागल लगने लगा. अरे सूअरों...पढ़े-लिखे अन्पदों, जब बच्चा बड़ा होता है तो उसका शरीर नहीं बदलता? हौर्मोनल चेंज नहीं आते? तो क्या बच्चों को डोक्टरों के पास ले जाते हैं? डॉक्टर साहब! देखिये मेरा बच्चा कैसे लम्बा  होता जा रहा है. बचाइए इसे." प्रोफेसर हंसने लगे- "अरे मूर्खों!- उसी तरह से एक दिन इंसान के दिमाग के कैमिकल भी चेंज हो जाते है. उठा लाये एक सूअर के पिल्ले के पास मुझे. अब में घर जा रहा हूँ. तुम लोगो को बता दिया- मेरा लैब से अब कोई नाता नहीं. न मुझे पेंशन की ज़रुरत है. तुम लोगो की तरह शराब और रंडियों पर पैसा नहीं उड़ाया है मैंने. बहुत बचा रखा है. बाकी ज़िन्दगी के लिए बहुत है."


इस तरह न जाने क्या-क्या बडबडाते हुए प्रोफेसर वहां से निकल गए. किसी ने रोका नहीं. जिस टैक्सी से वो गए - उनका कुछ लोगों ने पीछ किया ताकि ये देख सकें कि वो ठीक ठाक घर पहुँच गए.


7
रिसर्च लैब के हैड और कई वैज्ञानिकों ने तरह-तरह से अर्थर स्मिथ को समझाने की, मानाने की कोशिश की. बहला-फुसला कर साईकैट्रिक के पास भी ले गए. अर्थर स्मिथ धोखा खा के पहुँच जाते, बिलकुल सामान्य ढंग से सेशन बीत जाता. पर बाहर निकलते ही वो ले जाने वाले को गालियाँ देकर घर चले जाते.


इस तरह समय के साथ-साथ लोगों ने भी साड़ी कोशिश छोड़ दी. छोड़ते भी कैसे नहीं? कौन बार-बार बेईज्ज़ती बर्दाश्त करता? प्रोफेसर के मुंह से अपनेी-गन्दी गालियाँ सुनता?


प्रोफेसर ने अपने घर से निकलना छोड़ दिया. दो महीनो में रिसर्च लैब ने उनसे हर तरह के नाता तोड़ दिया.


अब-


प्रोफेसर अर्थर स्मिथ की दुनिया अलग थी.


8 

द्रोवेलिया की राजधान- डुजाक.

सायेकेत्रिस्ट सिल्वर क्रिस्टी अपने क्लिनिक के पास के एक होटल में लंच ले रहे थे. लंच के बाद उन्होंने सिगार सुलगा लिया. तब उन्होंने देखा एक आदमी तेज कदमो के साथ उनकी तरफ आ रहा था.


उसने पास आकर पूछा- "डॉक्टर सिल्वर क्रिस्टी?"
"यस?"
"क्या मैं आपसे बात कर सकता हूँ?"
"श्योर! बैठो."
बैठते हुए उसने अपना परिचय पत्र निकलकर टेबल पर रख दिया.
"मैं डायमंड हूँ. DCI से."
क्रिस्टी थोडा चौंका. "DCI यानि - द्रोवेलियन कंट्री इंटेलिजेंस?"
"जी! मैंने आपकी बहुत तारीफ़ सुनी है, डॉक्टर. मेरे पास एक रोगी है, उसे सिर्फ आप ही सही कर सकते हैं."
"हूँ!" क्रिस्टी सोच में पद गया. उसे लगा एक जासूस के पास कोई पागल मुजरिम ही रोगी हो सकता है.
"आप उसे देखेंगे?"
"हाँ...शायद... क्या वो कोई?..."
"वो एक वैज्ञानिक है. प्रोफेसर अर्थर स्मिथ. दो साल पहले तक वो देश की रिसर्च लैब में काम करते थे."

"ठीक है. आप उन्हें कल सुबह मेरे क्लिनिक में ला सकते हैं. लेकिन उससे पहले मुझे विस्तार में उनके बारे में जानकारी चाहिए."
"ओके! पूछिए."
"यहाँ नहीं मिस्टर डायमंड. मेरे क्लिनिक चलिए."

लगभग दो मिनट में दोनों उनके क्लिनिक पहुँच गए. फिलहाल लंच टाइम था और उनका अभी कोई पेशेंट नहीं था. उनका सहायक वेटिंग रूम में बैठा था.
वो दोनों क्रिस्टी के केबिन में आ गये जो कि साउंड-प्रूफ था. सोफे पर बैठते हुए क्रिस्टी ने पूछा- "अब बताओ दो साल पहले क्या हुआ था?"

"प्रोफेसर स्मिथ ने लैब छोड़ दी थी."
"क्यों?"
"उनके साथी वैज्ञानिकों का कहना है कि वो एकदम से सनक गए थे और अजीब हरकते करने लगे थे."
"ओह! तो उस वक़्त उनका कुछ ट्रीटमेंट किया गया?"
"कोशिश की गयी पर कुछ सफलता हाथ नहीं आई."
"उनकी पर्सनल लाइफ के बारे में कुछ बताएं."

"न के बराबर ही है. शादी कभी की नहीं. सारा टाइम सिर्फ रिसर्च में ही निकाल दिया. उनका कोई ख़ास दोस्त भी नहीं है."
क्रिस्टी साड़ी बाते नोट क्र रहा था. "कोई और रिश्तेदार?"
"अभी तो मेरे अलावा कोई भी नहीं है. उनके भाई थे वो कई साल पहले ही गुज़र गए."
"आप उनके?"
"वो मेरे अंकल हैं."
"ओह! मैं समझ रहा था ये जासूसी से रिलेटेड है."
"नहीं!" डायमंड तनिक मुस्कराया. "ये पूरी तराह से पर्सनल है. सच बात कहूँगा- मैंने अपना आई कार्ड आपको सिर्फ इसलिए दिखाया था ताकि आप मुझे टाले नहीं."


प्रोफेसर आर्थर स्मिथ की शक्ल काफी बदली हुई थी. चेहरे पे बढ़ी हुई दाढ़ी मूछ थी. आँखे में थकान और शरीर भी काफी पतला हो गया था.

डायमंड के साथ वो डॉक्टर क्रिस्टी के क्लिनिक में सुबह पहुंचे. डायमंड वेटिंग रूम में बैठ गया और अर्थर स्मिथ डॉक्टर के रूम में.

"हेल्लो डॉक!" उन्होंने गर्मजोशी से क्रिस्टी से हाथ मिलाया.
"प्रोफेसर स्मिथ?"
"यस!"
"नाईस मीटिंग यू. अप यहाँ आराम से सोफे पे लेट जाईये."
अर्थर ने वैसा ही किया.
"आपका आज का दिन कैसा रहा?"
"ठीक ठाक."
"बिलकुल खुश हैं?"
"मैं बीमार हूँ." अर्थर के मुहं लटक गया था. "पता नहीं पहले मैं क्यूँ नहीं समझा. क्या आप मुझे ठीक कर सकते हैं?"
"मैं वादा करता हूँ-पूरी कोशिश करूंगा."
अर्थर ने सर हिलाया फिर दीवार पर लगी पेंटिंग को घूरने लगे.
"आप आजकल क्या कर रहे हैं?" क्रिस्टी ने पूछा.

"दोस्त ढूढ़ रहा हूँ. दोस्ती के बाद प्यार होगा, फिर मैं शादी करूँगा."
"ये तो बहुत अच्छी बात है. क्या फिलहाल आपकी कोई गर्लफ्रेंड है? "
"नहीं. बॉयफ्रेंड है."
"आपका?"
"हाँ मेरा. मैं उससे भी शादी कर सकता हूँ."
"ओके!"
"क्या आपका सेक्रेटरी शादीशुदा है?" अर्थर एकदम से खुश होते हुए बोला.
"क्या आपको हमेशा से आदमी अच्छे लगते थे?"
अर्थर चुप रहे. अब वो छत को घूर रहे थे.


"प्रोफेसर मुझसे बात करिए."
"डॉक! तुम भी मुझे पागल समझ रहे हो."
"जी नहीं! आप सिर्फ बीमार हैं."
"मैं जानता हूँ तू किस बीमारी का इलाज़ करता है सूअर." अर्थर चिल्लाते हुए उठ खड़े हुए.
"प्लीज़ बैठ जाइये प्रोफेसर." क्रिस्टी का लहजा एक दम सामान्य था.
"कैसे बैठ जाऊं?" कहते हुए वो धम्म-से सोफे पे बैठ गए. और डांटते हुए बोले- "मैं तुम्हारी तरह फ़ालतू नहीं हूँ. मेरे पास करने लायक काफी काम हैं. तुम्हारी तरह लोगों को बेवकूफ बनाने का धंधा नहीं है मेरा."
"प्रोफेसर अपने काम के बारे में कुछ बताईये."
"वाह!" वो हँसे. "अबे मैं साइंटिस्ट हूँ, लोगों को अपना काम बताता घूमूँगा क्या."


क्रिस्टी शांति से उन्हें देखता रहा. उसे किसी तरह से विचलित होते न देख के, अर्थर ने भी थोडा अंदाज़ बदला और फिर अपनेपन से बोले- "डॉक! मुझे लगता है मेरा अविष्कार पूरा हो चूका है. पर वो बेकार है."
"ऐसा क्यूँ?"
"सब मुझे पागल समझते हैं. इसलिए मैंने लैब छोड़ दी. मेरा अविष्कार कितना भी अच्छा हो, कोई इसे नहीं पूछेगा." दो पल की ख़ामोशी के बाद- "देखना एक दिन ये सब लोग पछतायेंगे. मुझे सताने वाले लोग जिंदा नहीं रहेंगे. उन्हें मरना होगा. और मैं उन पर हंसूंगा, जिस तरह आज वो मुझ पर हंस रहे हैं."


उन्क्के चुप होने के बाद क्रिस्टी बोला-"प्रोफेसर आप चिंता मत करिए. मेरा आपसे वादा है- आप ठीक हो जायेंगे. कोई आप पर नहीं हंसेगा."
अर्थर मुस्कराया.
"हम कल मिलेंगे प्रोफेसर."


10 
डॉक्टर क्रिस्टी सोने के लिए पलंग पर लेट गया था. आंखे बंद करी तो आर्थर स्मिथ का चेहरा सामने आ गया. 'डॉक! मुझे लगता है मेरा अविष्कार पूर हो गया.'
'क्या वाकई प्रोफेसर के पास वैज्ञानिक काम करने के लायक बुद्धि रह गयी है. कहीं वो सब नाटक तो नहीं? उनका भतीजा एक जासूस है- DCI का एजेंट. क्या ये माला वाही है जो आँखों से दिख रहा है या कुछ और?'

क्रिस्टी का दमाग दौड़ रहा था. आज के चैक-अप से उसे अभी भी शक था की प्रोफेसर वाकई पागल है या नहीं. रिसर्च लैब में क्रिस्टी का एक दोस्त भी काम करता था. उसने शाम को उसे फोन किया था. उसने बताया-
"अर्थर पहले तो एक दम ठीक था, पर अचानक ही सनकी हो गा था. पर उनके जैसा दिमाग लैब में किसी के पास नहीं था. लैब छोड़ने इ पहले वो छेजें तोड़ने फोड़ने लगे थे, अपने सहायकों को मरने पीटने लगे और लोगों को भद्दी-भद्दी गलियां देते थे. लैब छोड़कर वो घर आ गए और अपनी  प्राइवेट लैब में काम करने लगे."

'जहा तक समझ में आता है- अर्थर अकेले में खुश रहने वाले इंसान थे, काफी वैज्ञानिक एसे ही होते हैं. फिर वो इस हालत में कैसे पहुच गए. शायद ज़रुरत से बहुत ज्यादा काम से, या फिर उन्हें पागल होने के लिए मजबूर कर दिया गया.' क्रिस्टी मनन कर रहा था-'वो आदमियों के बरे में ऐसी बातें क्यों कर रहे थे. हो सकता है वाकई होमो हों. खैर... मैं कुछ ज्यादा ही सोच रहा हूँ. कल उनसे और बात करके शायद कुछ पता चले.'


क्रिस्टी ने सोने के लिए करवट बदली, पर तभी फोन की घंटी बजने लगी.
"हेल्लो!"
"ड...डॉक!"
क्रिस्टी ने अर्थर की आवाज़ तुरंत पहचान ली.
"प्रोफेसर. क्या हुआ?"
"मैं पागल नहीं हूँ. मुझे तुम्हारी मदद की ज़रुरत है." वो घबराये हुए थे.
"मैं जनता हूँ प्रोफेसर , हम कल मिल रहे हैं न."
"नहीं अभी! प्लीज़ यहाँ आ जाओ. मैं आपको काफी कुछ बताऊंगा. मुझे सच में मदद चाहिए." कहकर उसने फोन रख दिया.
क्रिस्टी को ये मामला बड़ा ही पेचीदा लगा. शायद और कोई हूट तो वो उसे पागलपन का दौरा समझ के टाल देता, पर उसे तो लग रहा था शायद अर्थर स्मिथ पागल हैं ही नहीं और वाकई किसी मुसीबत मैं है.


दस मिनट बाद उसकी कार अर्थर स्मिथ के घर की तरफ जा रही थी.

1 comment:

  1. kya baat hai kaafi rahsyamaya.. professor naak kar rah hai lagta hai

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